छोटू जी

A B C D E F जी
स्कुल पढने गए छोटू जी             I


छोटू जी ने लगाया ध्यान ,
पा गए सारा ज्ञान                       I


छोटू जी ने खोला किताब ,
बना लिया सारा हिसाब                         I
टीचर ने कहा- वाह-वाह शाबास 
हँसते-खेलते कर गए मैट्रिक पास           I


+२ में लिया तब एड्मिसन 
झट ही कर गए ग्रेजुयेसन            I
बिना लफडा बिना टेंसन 
पूरा हुआ Ambition                     I


अब थी M . A . की बारी
साथ-साथ competition की तैयारी        I
एक चूक से बाजी हारी ,
धरी रह गयी सारी तैयारी                    I


समय का पहिया घूमता रहा ,
नवयौवन उसमे पिसता रहा       I
विपदा आन पड़ी घनघोर ,
पढाई अब करने लगा बोर            I


परिवार पर बनने लगे बोझ 
हाँथ में डिग्री , भविष्य की सोच   I
दर-दर भटके रोज-रोज,मन कहे -
जल्द कोई नौकरी खोज,जल्द कोई नौकरी खोज   I



दूरियां तेरे-मेरे दरम्याँ की - 2

मंजिल के सफर में,
कोई साथ मिला,
एक कारवां सा बना था    I
नई उम्मीदों के सहर में,
कुछ दूर तल्क,
वो भी साथ चला था          II


उस मोड़ से गुजरी थी जिंदगी,
बहुत देर तल्क थमकर रह गयी       I
अपनों के भीड़ में बेगाना बनकर,
खुद के दरम्याँ में सिमट कर रह गयी   II


कभी मुलाकात, तो कभी हालात बिगड़े,
सवंरते रिश्तों के सौगात बिगड़े                   I
जो बिछड़ा, कभी बहुत करीब था अपना
कुछ कसूर , तो कुछ नसीब था अपना          II


राह-ए-उल्फत का सिलसिला,
यूँ बनता गया , जाने क्या हुआ जो,
काफिले से दूर अकेला रह गया ;
ज्यों-ज्यों कारवां बढ़ता गया               I


जिस दिन रवानगी होगी 
हर जिंदगी तब बेगानी होगी             I
बेमानी रिश्तों को कफ्न करके ,
उन सारी यादों को दफ्न करके ,
बस ख़त्म तेरी-मेरी कहानी होगी         I
वक्त की फिजाओं में अब ,
हर वो चीज पुरानी होगी ,
जिस दिन रवानगी होगी.........

अरमानों की कब्र

मेरे अरमानों की कब्र पे  ,
तेरे दिल का ताजमहल हो                       II


               मेरे गम के वीराने में   ,
               तेरी दुनियां रौशन हो               II


जनाज़ा मेरा उठे   ,
और, घर में तेरे जलसा हो                       II


               मेरे खुदा, मेरी हर बर्बादी पे  ,
               मेरा महबूब सलामत हो           II   

ए बबुआ के महतारी

ए बबुआ के महतारी ,
लइकवा भइले नौटंकीबाज  ।
ओके करतूत से, भरी बिरादरी,
कट गईले नाक हमार  ।

आश रहे, लइका बने इंजीनियर
और डागडर या बने बड़का आफिसर  ।
पढ़यला-लिखैला हो गईल बेकार  ।
सब छोड़-छाड़ के, हो गईले कलाकार  ।

कूल्हे मटकाये, तन उघार,
नाच दिखावे, सरे बाजार  ।
संग-संग ओके डोले है छोरी,
लाज न आवे जे के निगोड़ी  ।।

फूटी रे किस्मत हमरी,
जो अइसन लईका भइले  ।
शुरू से ही लछन रहे देखार, 
हर घड़ी जब, नाचत रहे घर-द्वार  ।।

ऊ सवनवा, भइल रहे गवनवा,
ना मानलु तू एको ठोप  ।
कहत रहंली, समझावत रहंली,
मत देखन जा तू बाइस्कोप  ।।

अब पछताय का होय,
जब जनम के बन्धनवा देईले तोड़  ।
उलट गइल जमनवा, अब सबहुँ में,
फिल्मा में, जायके लागल बा होड़  ।।

माना के परम्परा-रूढ़ि टूटे के चाहीं,
किताब ही न, हर ज्ञान जरुरी बा  ।
अब खेलकूद, नाचगान में भी मौका बा ।।
बस, हावी ना हो, टीवी-गूगल के दाँव-पेंच,
क्यूंकि ई चिर सत्य है - अति सर्वत्र वर्जयेत, 
बनी रहे संस्कृति आपन, गलत से हों सचेत  ।।

दूरियां तेरे-मेरे दरम्यां की-1




जिंदगी के इस सफ़र में ,

तेरे हम-दम को तरसते हैं..............

चहकते थे कभी तेरे सोहबत में ,

वो लब अब सिसकते हैं      I

गम की तन्हाईयों में अब ; बस

अश्कों के समंदर बरसते हैं      I


                      महफिल मे रम गया होता ,

                      एक कारवां मिल गया होता ,

                      गर तेरा साथ ना छूटा होता     I

                      अब तो वीरान राहों पे अकेले ,

                      काफिले से दूर...........बहुत दूर ,

                       बस मंजिल को तरसते हैं        I


जिंदगी के इस सफ़र में ,

तेरे हम-दम को तरसते हैं..............






तुम हो तो ..........

तुम हो तो हम हैं
तुम हो तो हम हैं      I
तुमसे ही ये गीत- ये नज्म है      I

मैं चाँद , रश्मि हो तुम      I
प्यार के आसमाँ की ,
वो खुबसूरत जमीं हो तुम     I
जिन्हें क्षितिज के उस छोर का इंतजार है
जहाँ दोनों का मिलन हो        I
कैसे बताएं तुम्हें, तुम मेरी कौन हो   ?


सुबह की जवां ओस में ,
दोपहर की तड़पती सोच में ,
ढलती शाम की तन्हाई में ,
रात की हसीन परछाईं में ,
सांसों में - धड़कन में ,
बस तेरा ही अहसास हम-कदम है   I
तुम हो तो हम हैं...

चींटी

क्या तुमने चींटी देखा है ?
पल में ओझल ,
सबमे उपेक्षित ,
क्या वह लघु कीट देखा है ?

                 विधाता की वह पहचान ,
                 कोई कृति कातर ,
                 मांग रहा जीने का
                 अधिकार एक समान   I

वह भी डरता है, जब
धरा में हो कम्पन               I
बदहवाश हो जाता है, जब
जोर से चले पवन                I

                  उर में  दया-प्यार समभाव ,
                  व्यथा से रोता आकुल तन-मन 
                  पद-मर्दित होता है जब ,
                  कौन सुनता उसका क्रंदन ?

तराना-ए-महंगाई

सारे जंहाँ में फैला,
महंगाई का नजारा               I
हम शिकार हैं इसकी,
यह विनाशक हमारा-हमारा    II
         सारे जंहाँ में फैला...........

पर्वतों से भी ऊँचा,
भाव हर सामां का
जहाँ पहुँच नहीं इस अदने का,
पर है वो जरुरत हमारा-हमारा
           सारे जंहाँ में फैला...........

मुलाजिम हूँ मैं सरकारी,
जहाँ आमद है ना बढियां      I
राशन में ही सब, स्वाहा
हो जाता तनख्वा हमारा-हमारा    II
             सारे जंहाँ में फैला...........

जेब नहीं सिखाता,
चादर से बाहर पैर फैलाना
मजबूर हैं हम, मजलुम हैं हम,
वतन है हमसे बेखबर,हमारा-हमारा    I
           सारे जंहाँ में फैला..............


ए मेरे वतन के लोगों,
वो दिन हैं क्या याद तुझको     I
बहती थी कभी दूध की नदियाँ,
कहाँ गया वह युग प्यारा हमारा-हमारा     II
       
         सारे जंहाँ में फैला,
          महंगाई का नजारा......

नोट-  क्षमाप्रार्थी हैं......मोहम्मद इक़बाल द्वारा रचित देशभक्ति गीत की धुन की पैरोडी के लिए. इसे कदाचित अपमान ना समझें ......बस एक प्रयास भर है लेखक का, देश की तत्कालिक व ज्वलंत समस्याओं के वर्णन का.....


आरजू

एक भली जिंदगी की चाह में,
हर दिन मरे जा रहें हैं लोग     I

        मौत की आरजू है,
        फिर भी; हम जिए जा रहें हैं    I
            (compiled from a noted film of RAJESH KHANNA)






मेरे अरमानों पे,
खंजर सा चला है     I
अब तो ये वाक्या,
आम-ए-मंजर हो चला है     I


दिल टुटे, अश्कों का समंदर
चले, किसी को क्या ?
इंसान-ए-दिल,
यूँ बंजर हो चला है        II




दिल लगा के देखो,
इक दर्द सा होता है              I
आग सी लगी होती है,
धुंआ -धुंआ सा उठता है       II

इक झलक मिले तो,
सुकून यूँ मिलता है            I
मुस्कुराते लबों से
रंगीन समाँ होता है            II

एक ख़त देश के वास्ते

स्वतंत्रता के परिवेश में
बढ़ते कदम नये दौर में           I
आज इस पर्व विशेष पे
मेरी सुभकामनाएँ तेरे वास्ते   II
     एक ख़त देश के वास्ते...............

इस लम्बे सफर में
तय किये कितने फासले ?
पर शेष हैं अभी बहुत
चंद सवाल मेरे जवाब मांगते      II
         एक ख़त देश के वास्ते.............

गर्क होते वो सपने,
देखे थे कभी तुमने,
जहाँ से चला था तु,
देख आज कहाँ खडा है तु     ?
अँधेरे गलियारे में लक्ष्य से
भटकते तेरे रास्ते                 I
         एक ख़त देश के वास्ते ................

कुछ जख्म अब तल्क हरे हैं,
पुराने नासूर बन चुके हैं           I
धर्मोन्माद सर्वत्र जहर फैलाते,
आतंकवाद-उग्रवाद बरसों से मुंह चिढाते      II
          एक ख़त देश के वास्ते................

भुखमरी,गरीबी,बेकारी,
बेमौत मरने की लाचारी           I
बिगड़ते हालात, मिला सौगात    I
आबादी पर हुआ ना नियंत्रण,
पर्यावरण का डगमगाता संतुलन    I
घटती सुविधाएं,समस्याएं पैर पसारते    I
          एक ख़त देश के वास्ते.................

बढती महंगाई , फैलते कालाबाजार,
राजनीति के भी गंदे बाज़ार                I
कहीं भ्रष्टाचार,कहीं व्यभिचार,
करते चीत्कार,नारी के बलात्कार        I
दफन हो गई तेरी सभ्यता-संस्कृति,
और कब्र पे इसके जश्न मनाते           II
           एक ख़त देश के वास्ते.................

कैसा निर्माण करते ये शिक्षाकरण,
अनपढ़ बहुत, पर जो पढ़े-लिखे हैं
दूर कहीं, हाशिये पे खड़े हैं                I
हर महक्कमे में प्रतिभा का चीरहरण
सरकारी नीतियाँ, भीस्म्वत मूक निहारते
अंधे ध्रितराष्ट्र जनसमूह अकुलाते             II
          एक ख़त देश के वास्ते................

कोई नया ज्ञान, निकाले समाधान       I
संकल्प लेने का वक़्त, हम जागें
छोड़ निज स्वार्थ , देशहित हो आगे      I
हो हमें देश का अभिमान,
दें कोई नयी पहचान            I
नयी सुबह में, ढूंढे नये रास्ते     II
       
          एक ख़त देश के वास्ते....................


नेता और चुनाव

लो फिर आ गया चुनाव, 
चारों ओर मंची कांव-कांव ।

      हो गयी यह लोकसभा भंग ,
      विरोधियों में होली का हुडदंग।
      चुनाव कर रहा है हमें तंग ,
      अब होगी राजनैतिक जंग   ।

चुनाव ने तो एक मुसीबत दे डाला,
पर हमने पार्टी का मोर्चा संभाला  ।
बनाकर नया चुनावी अजेंडा,
चल पड़े,लेकर हाथ-में पार्टी का झंडा  ।

       जनता के बीच हम जायेंगे,
       अपना अल्लख जगायेंगे   ।
      मीठी-मीठी बातों से बहलाएँगे,
      बनके मेनका,वोटर पटायेंगे   ।

भाषण लुभावने होंगे ,
बड़े-बड़े वादे होंगे   ।
काम अधूरे, पूरे होंगे,
जब हम मंत्री बनेंगे   ।
      
हमें वोट दे दो भईया,
देखो तो भूखी खडी है तेरी गईया  ।
सड़क भी है उजड़ी, सुख
गई है ताल-तलैया   ।

नेता ये जो तुम्हारा है,
चारा,अलकतरा,रुपैया,
न जाने क्या-क्या खा रहा है ?
अपनी ही दुकान चला रहा है,
घोटाले खूब करा रहा है   ।

       अब न गरीबी,ना बेरोजगारी,
       खुशहाल होगी दुनिया तुम्हारी ।
       मूल्य पर भी होगा रोक,
       मिले जो मुझे आपका वोट ।

आपके द्वार हम आयें हैं,
वादे अच्छे-अच्छे लायें हैं  ।
आपसे-ही आश लगायें हैं,
कब आप हमारी भाग्य जगाएं ?
क्या दर से तेरे, निराश ही लौट जाएँ ?

     हाय ! कितने मिन्नतें कियें हमने,
     कोई ना सुने हमारी  ।

     हमारे प्रति जनता में शंका की,
     कैसी फैली हुई-है महामारी   ।

क्या जोड़-तोड़ लगायें ?
कैसे वोट जुटायें ?
की सरकार बने हमारी,
और हम करें राज-सवारी  ।

      कुछ उपाय सुझावों यारों,
      कोई चाल बतावो यारों  ।
      जनता हमपर हो मेहरबान,
      बहुमत जुटाना हो आसान  ।
      और, विरोधी भी ना करें परेसान ।।

काश ! एक बार   (२)
सरकार बन जाये हमारी,
और हम हों जाएँ मंत्री ।
फिर कैसा होगा नज़ारा,
जनता पर जब, राज होगा हमारा ।
   
      रजवाड़े से होंगे तामझाम,
      जिंदगी में होगी फिर, ऐश-औ-आराम ।
      हमारे लिए ही सब करेंगे काम,
      जैसे बीवी और गुलाम ।

ख़ुशी में गाना तब गायेंगे,
लुट-पाट चारों-ओर मचाएंगे ।
जनता की खायेंगे,
जनता के गुण गायेंगे ।

        जनता तो बेचारी है,
        थोडा पछताएगी,और
        पांच साल में सब-कुछ भूल जायेगी ।
        ये कहानी फिर 
        दुहरायी जायेगी 
         झांसे में फिर वह आएगी ।

कल हम हों ना हों, साथी हमारे आयेंगे,
राग वही पुराने, फिर दोहरायेंगे ।
क्योंकि जमाने का यही दस्तूर है,
नेता तो अपने आदत से मजबूर है ।

पाठकों की तलाश

मेरे परम पूज्य पाठकों.....
मुझे यह कहते हुए,
हर्ष बहुत हो रहें हैं                      I
दिल के अनुरोध पे; तेरे लिए 
कलम मेरे कुछ लिख रहें हैं        II

            
        हां, मैंने जो लिखा है,
        कुछ, इस लायक बन पड़ा है 
        छा ज़ाऊ सारे आकाश में                     I
        पर अभी तो भटक रहा हूँ
        उम्मीदों के ही प्याले गटक रहा हूँ
        पाठकों की तलाश में                           II

क्या खल्लास कविता गढ़ा है,
कुछ इधर से, कुछ उधर से, 
हर रंग इसमे थोडा-थोडा है      I
मैंने तो कुछ ही जोड़ा है,
बाकी सब बाहरी निवेश,
ढूंढ़ रहा; वो परिवेश                II
मिले कोई पाठक विशेष,
बचे ना, अब प्रशंसा शेष          III

       महीनो काटें हैं वनवास में,
       की, आज बड़े दिनों के बाद
       मैं कुछ लिख रहा हूँ
       चर्चा है सरे बाजार में           I

एक अद्दद हिट की ज़रूरत मुझे,
फ्लॉप चल रहां हुं आजकल         I
मिल जाए मेहनत का सुफल,
बेचन मैं इसी इंतजार में             II


       कितने पापड़ हैं बेलें मैंने,
       प्रकाशक के अख़बार में         I
       ले-देके मामला सुल्टा है,
        हवा का रुख; अब
       मेरी ओर पल्टा है                 II


आज मेरी उमंगें जवां हैं,
मेरे फसाने पे खुदा भी मेहरबां है    I
दूर करो तुमभी ये रूश्वाई,
दुकां सजी है, चले आवो बाज़ार में     II


       पाठकों इसे छपवाने में,
       कीमत है; खुब चुकाई         I
       बिकने तक की नौबत आई,
       भिन्डी बाज़ार में                II


काश! यह चल जाय,
फार्मूला हिट कर जाय     I
लागत थोड़ी निकल आयेगी,
नैया अपनी पार लग जाएगी    II


       आ जाए लक्ष्मी हाथ में,
       भले, आधी चली जाये उधार में    I
       कुछ तो लगाऊं अपने कारोबार में,
       जो टिक सकूँ कम्पटीशन के बाज़ार में    II


यहाँ तो बहुत ठेलम-ठेला है,
बड़े-बड़े शूरमाओ का रेला है         I
देर से आया मै,
पर थोड़ी ज़गह बची है,
मेरे सामने कवियों की,
पूरी फौज खडी है                 II


          सभी लौ -लश्कर लेकर ,
          तीर-औ- तस्कर लेकर ,
          कूद पडा मै भी, जंग-ए-मैंदान में        I
           आ देखें जरा,
           किसमे कितना है दम ?
           अश्त्र बहुत, इस ज्ञान के भण्डार में     II


ए पाठकों ! मुश्किल के हर घडी में,
बन्दे को तेरा ही एक सहारा है           I
बस एक गुजारिश- औ- अंतिम ख्वाहिश है,
कमी आये ना तेरे प्यार में                II
और भटकूँ ना दर-दर
ऐसे, तेरी तलाश में                          III



पाठकों से

छोटी-सी है मेरी बात 
काव्य-जग का मैं नवजात.

मंद बढ़ता पथपर 
हर अनुभव साथ लेकर.

भूल हो कोई; बिसार देना
भटके गर राहें; सँवार देना.

मैं पथिक ऐसा, राह में खड़ा प्यासा 
प्यार चाहिए, प्यार देना.

बस छोटी सी है मेरी आशा .....पाठकों से.