बचपन की कवितायेँ

मतलबी रिश्ते 

किसी ने सच ही कहा है-
मतलबी हैं लोग , मतलबी जमाना
ना कोई अपना इस जहाँ में ,
ना कोई पराया यहाँ
जमाना तो बस पैसे का दीवाना        I

मतलब के ये रिश्ते हैं
बस मतलब के लिए जोड़े जाते हैं      I
मतलब निकल जाय गर ,
तो तोड़ दिए जाते हैं                          II

रिश्ते-नाते हैं बस दिखावा ,
टूट गर जाएँ ये रिश्ते ,
सुनी हो जाएँ इनसे राश्ते ,
क्यों करे कोई पछतावा                   I


मतलब से बंधे थे वो
हुआ स्वार्थ पूरा, साथ छोड़ा    
अब पहचानते भी नहीं                    I
था जिन्हें दोस्ती पे नाज़,
नज़र यूँ फेरा है आज,
जैसे हमें जानते ही नहीं                  II

आँख खुली तो ये जाना,
भलों का ना ये ठिकाना                   I
पग-पग पे क्या हो जाये,
कोई ना ये जाना                           I

कभी लूट जाता है, तो        
कभी दिल टूट जाता है                  I
ग़मों के साये में मुसाफिर,
हर दिल से रूठ जाता है                 II

क्या कहें इस जहां को ?
लोगो का हुजूम है मगर
चिराग रौशन करो अगर
इन्सान नहीं एक मिलते हैं,
शैतानों की बस्ती हो जैसे
ढूंढो  एक, हज़ार मिलते हैं

इसीलिए तो किसी ने कहा है-
देखो ! तुम संभल कर चलना,
ठोकर खाकर कहीं गिर न जाना             II