अधूरी मुलाकात 2

फिर एक मद्धम सरसराहट उस बासंती की
और मन बांवरा बन कोयल सा कूंक जाते हो
जुबां, आंखे, ये सांसे सब बंद होने को इस कदर
जाने कैसी बयार संग अपने लाते हो ।
मेरी कलम-मेरी नज्म में जज्बातों के,
जाने कौन सी जान फूंक जाते हो   ।।

बस धुंधलेपन में एक हुस्न ए शय छोड़
किसके चाहत के आशियाने को महका जाते हो  ।
सामने होकर भी यूँ  हुनर ए बेपरवाह,
हर बार आँख मिचौनी इस अदा से खेल जाते हो  ।
खामोश ए दिल के लम्हें, हर मंद स्पंदन पे
जाने कैसी राग छेड़, एक कसक छोड़ जाते हो  ।।

गोपाल संग प्रीत

तप्त धरा देख बदरा तरसे
मूर्क्षित पर्ण-तरुवर पे प्राण छींटने
बिन सावन, बिन नक्षत्र बरस जानी ।

भँवर-पुष्प क्या कोई बैर पुरानी
कोमल अधरों का आलिंगन दे जिसे
डंकों से आहत वो मधु भरी रसधानी ।

क्षीर को भी अमृत बना दे,
हर बूंद उसकी तन मन शीतल करे
ऐसी वो शरद पूर्णिमा की / पूरण चाँदनी ।

है अथाह अविरल व्याप्त जग में
उसकी आश की बूंद-बूंद को न तरसे
ऐसी प्रीत की डोर गोपाल संग बाँधनी ।

कारोबार धर्म का

यहाँ धर्म का ठेकेदार है,
तो कहीं पूजा का कारोबार है
जरा देखना, ये कौन है मंदिर में ?
भक्त जमानती तो भगवान फरार है ।

इतनी भीड़ क्यूँ, जिस दर देखो, सभी कितने परेशान हैं
थोड़ा ठहर के और सोच लो, अभी और कितने अरमान हैं ।
जिसकी तुझे आश, वो तेरे ही पास, कब उसके बस की रही
जो उसकी तुझसे चाह है उसकी तो तुझे प्यास ही नहीं ।

टेक सको तो, टेक लो माथा शुकुन भर
भुजंग लिए वहाँ तो कोई पहरेदार खड़ा है ।
मिटा हो मैल, मिले जो मुक्ति तो हमे भी बताना,
चंदा तहसिलने वहाँ तो कोई साहूकार पीछे पड़ा है ।

जब आंख खुली मन की, तो ही पड़ा ये जान
पूज्य औ पुजारी दोनो दिखें एक ही समान ।
वो मन फेरे, तू किसी और फेर में अगम्य है
अदृश्य है तो अदम्य है, वो करे तो सब क्षम्य है
हो रहा किसी के लीलाओं का यहां गुणगान
देह वालों की करतूतों से जग देखो परेशान ।

कुकर्म का लगा मैल चढ़ा है गहरा, अब किस घाट धुले
भय, भ्रम का कोई मंत्र अब किस मंदिर-मस्जिद मिले
इस आश में कितने नदी डूबे, तो कई पहाड़ चढ़े
खाक छानते फिरे शहर, जंगल और बियावान
उम्रभर जोड़ते रहे जो घटाकर, क्या गरीब क्या धनवान
अब कुछ खो गया है, क्या ढूंढे दर-दर जो होके परेशान ।

मांगने ही आया है तो फिर ये रिश्वत क्यों
ये धूप, फल-फूल, चादर फिर किसके लिए  ।
पत्थर ही तो है, फिर ये सोने का चढ़ावा क्यों
बांटा ना जो और बंदों में, ये दान-पुण्य किसके लिए  ।
उसके दर पे ही ये दिखावा, इतना आडम्बर क्यों
जो लाना था मन ला न सका, ये तन किसके लिए  ।

लड़खड़ा कर अभी और गिरेगा जमाना
कोई और भी है, जो बदनाम बड़ा है ।
की तेरे दर से , मयखाना लाख भला
गम भुलाने, मय लिए शाकी आतुर खड़ा है ।
यहाँ भी तो फरियादी ही दिखते,अंतर बस
सोम में डूबा जिंदगी का कोई मदहोश पड़ा है ।