The Students Files

अथ श्री कथा विषय :- दी स्टूडेंट्स फाइल्स,
कर में कलम-किताब, चेहरे पे बेचैन स्माइल्स ।
विश्वभर के सभी बेरोजगारों को समर्पित,
स्वयंभोगित और सत्य घटनाओं पर आधारित ।।

( नेपथ्य में झारखंड-बिहार-यूपी से हंसी की आवाज....
और फिर कानों को बेधती, वही चिरपरिचित राज :-
"की रे मुन्ना दाँत निपोर, जोर-जोर से हँस, और
लोकलुभावन चुनावजीवी बहेलिया के जाल में फँस"
"काहे विशु... इतने में ही धैर्य खो देलहीं...
पंचवर्षीय जेपीएससी तब कईसे निकालबहिं "
"का हो सुशील बाबू...अँग्रेजी में हकलात हउवे,
त ससुरा ई इंटरव्यू कईसे निकली ........" )

कलम घिसता, हुनर निखारता,दौड़ लगाता बेदर्द
हाड़ मांस का बेबस- बेमौत लाचार हूँ मैं 
जगहँसाई, तानों का पात्र, एक किरदार हूँ मैं ।
सेटिंग-वेटिंग, मुकदमों की पेंच में फंसा,
रिजल्ट की आस ताकती आंखों का,
अपनी बारी का, वर्षों का इंतजार हूँ मैं ।

कौन हूँ मैं, ....किसी पहचान का मोहताज ?
हाय ! किस कदर, कितना बेज़ार हूँ मैं ।
ना अभीनेता, ना राजनेता, 
ना कलाकार, ना पत्रकार हूँ,
ना हिन्दू- मुस्लिम, ना सिख- ईसाई
ना दलित, ना मैं अल्पसंख्यक,
जात बाहर उपेक्षित बहुसंख्यकवार हूँ मैं ।
बस केवल...केवल एक बेरोजगार हूँ मैं ।।

दौड़ लगाता, अटकी भर्तियों का तलबगार हूँ मैं,
अखबारों के कोने में दुबका चर्चा-विमर्शवार हूँ मैं,
आँकड़ो- योजनाओं में सिमटा भ्रस्टाचार हूँ मैं,
यातना शोषित, मंत्रणा ग्रषित व्यभिचार हूँ मैं,
शिक्षा माफियाओं का मनपसंद खरीदार हूँ मैं
ना किसी पर्व-त्योहार, खुशियों का हकदार हूँ मैं,

दिग्भ्रमित खुशगवार, कितना होशियार हूँ मैं,
वोटबैंक में तब्दील, लोकतंत्र का हथियार हूँ मैं
हिंदीपिढ़ी के जयश्रीराम नारे की ललकार हूँ मैं
देश, सिस्टम, हाकिमों का बलत्कार हूँ मैं,
नेपथ्य में किसी अबला सी अनसुनी चीत्कार हूँ मैं,
ना जानें कितनों का गुनाहगार हूँ मैं ।

हां.... पहचानों मुझें... वो...वो मैं ही हूँ
आपके आस-पास, इर्द-गिर्द ही कहीं,
छः बाई छः के सीलन सेल का शरणार्थी,
रोजगारयाचक, बेरोजगारी-भत्ते का प्रार्थी
उम्मीदों के घोड़े दौड़ाता हुआ एक सारथी,
कई संकल्पों को ढोता हुआ एक विद्यार्थी ।

पकौड़ा भी तल लेंगे, चाय बेच लेंगे
मेहनत-मजदूरी, हल चलाना जानते ही हैं ।
अभी लेथ-मशीन पर कुछ सवाँर रहे,
तैयारी आत्मनिर्भर भारत का हिस्सा बनने की
बेगार नहीं, बैठे नहीं किसी भरोसे के आस,
ज्ञानपथ पर अग्रसर, खुदके कर्म पे विश्वास ।
योजनाओं, मोहलत, ना झाँसे की ही दरकार,
मुकद्दर ए सिकंदर, ना हमारे ऊपर सरकार ।।