ए बबुआ के महतारी

ए बबुआ के महतारी ,
लइकवा भइले नौटंकीबाज  ।
ओके करतूत से, भरी बिरादरी,
कट गईले नाक हमार  ।

आश रहे, लइका बने इंजीनियर
और डागडर या बने बड़का आफिसर  ।
पढ़यला-लिखैला हो गईल बेकार  ।
सब छोड़-छाड़ के, हो गईले कलाकार  ।

कूल्हे मटकाये, तन उघार,
नाच दिखावे, सरे बाजार  ।
संग-संग ओके डोले है छोरी,
लाज न आवे जे के निगोड़ी  ।।

फूटी रे किस्मत हमरी,
जो अइसन लईका भइले  ।
शुरू से ही लछन रहे देखार, 
हर घड़ी जब, नाचत रहे घर-द्वार  ।।

ऊ सवनवा, भइल रहे गवनवा,
ना मानलु तू एको ठोप  ।
कहत रहंली, समझावत रहंली,
मत देखन जा तू बाइस्कोप  ।।

अब पछताय का होय,
जब जनम के बन्धनवा देईले तोड़  ।
उलट गइल जमनवा, अब सबहुँ में,
फिल्मा में, जायके लागल बा होड़  ।।

माना के परम्परा-रूढ़ि टूटे के चाहीं,
किताब ही न, हर ज्ञान जरुरी बा  ।
अब खेलकूद, नाचगान में भी मौका बा ।।
बस, हावी ना हो, टीवी-गूगल के दाँव-पेंच,
क्यूंकि ई चिर सत्य है - अति सर्वत्र वर्जयेत, 
बनी रहे संस्कृति आपन, गलत से हों सचेत  ।।