आरजू

एक भली जिंदगी की चाह में,
हर दिन मरे जा रहें हैं लोग     I

        मौत की आरजू है,
        फिर भी; हम जिए जा रहें हैं    I
            (compiled from a noted film of RAJESH KHANNA)






मेरे अरमानों पे,
खंजर सा चला है     I
अब तो ये वाक्या,
आम-ए-मंजर हो चला है     I


दिल टुटे, अश्कों का समंदर
चले, किसी को क्या ?
इंसान-ए-दिल,
यूँ बंजर हो चला है        II




दिल लगा के देखो,
इक दर्द सा होता है              I
आग सी लगी होती है,
धुंआ -धुंआ सा उठता है       II

इक झलक मिले तो,
सुकून यूँ मिलता है            I
मुस्कुराते लबों से
रंगीन समाँ होता है            II