स्वतंत्रता के परिवेश में
बढ़ते कदम नये दौर में I
आज इस पर्व विशेष पे
मेरी सुभकामनाएँ तेरे वास्ते II
एक ख़त देश के वास्ते...............
इस लम्बे सफर में
तय किये कितने फासले ?
पर शेष हैं अभी बहुत
चंद सवाल मेरे जवाब मांगते II
एक ख़त देश के वास्ते.............
गर्क होते वो सपने,
देखे थे कभी तुमने,
जहाँ से चला था तु,
देख आज कहाँ खडा है तु ?
अँधेरे गलियारे में लक्ष्य से
भटकते तेरे रास्ते I
एक ख़त देश के वास्ते ................
कुछ जख्म अब तल्क हरे हैं,
पुराने नासूर बन चुके हैं I
धर्मोन्माद सर्वत्र जहर फैलाते,
आतंकवाद-उग्रवाद बरसों से मुंह चिढाते II
एक ख़त देश के वास्ते................
भुखमरी,गरीबी,बेकारी,
बेमौत मरने की लाचारी I
बिगड़ते हालात, मिला सौगात I
आबादी पर हुआ ना नियंत्रण,
पर्यावरण का डगमगाता संतुलन I
घटती सुविधाएं,समस्याएं पैर पसारते I
एक ख़त देश के वास्ते.................
बढती महंगाई , फैलते कालाबाजार,
राजनीति के भी गंदे बाज़ार I
कहीं भ्रष्टाचार,कहीं व्यभिचार,
करते चीत्कार,नारी के बलात्कार I
दफन हो गई तेरी सभ्यता-संस्कृति,
और कब्र पे इसके जश्न मनाते II
एक ख़त देश के वास्ते.................
कैसा निर्माण करते ये शिक्षाकरण,
अनपढ़ बहुत, पर जो पढ़े-लिखे हैं
दूर कहीं, हाशिये पे खड़े हैं I
हर महक्कमे में प्रतिभा का चीरहरण
सरकारी नीतियाँ, भीस्म्वत मूक निहारते
अंधे ध्रितराष्ट्र जनसमूह अकुलाते II
एक ख़त देश के वास्ते................
कोई नया ज्ञान, निकाले समाधान I
संकल्प लेने का वक़्त, हम जागें
छोड़ निज स्वार्थ , देशहित हो आगे I
हो हमें देश का अभिमान,
दें कोई नयी पहचान I
नयी सुबह में, ढूंढे नये रास्ते II
एक ख़त देश के वास्ते....................