राजनीति चरित्र मानस सह महाभारत

धैर्य, धीरज और धरिये थोड़ा ध्यान
गोपाल आये हैं बांटने, काव्य ज्ञान
आइये आज आपको ताज़ा हाल सुनाते हैं
राजनीति का चरित्र मानस पाठ कराते हैं ।

अथ श्री विपक्ष नेता उवाच :-
मंगल भवन, अमंगल हारी
आन पड़ी लोकतंत्र पर विपदा भारी
द्रबहु सुदसरथ अचर बिहारी,
गड़े मुर्दे खोद, केस में फंसी विपक्ष बेचारी
सियाराम,सियाराम, सियाराम, जय जय भगवान
बचाओ-बचाओ, की, खतरे में है संविधान

अथ श्री सत्ता पक्ष उवाच:-
तुम्हारे अधर्म-कुकर्म से तो इतिहास पटा है
सत्तर साल तुमने देश लूटा, हमें रखा भूखा ।
हमसे तुम्हारी क्यूं जल रही, देखो नींव तुम्हारी हिल रही
जनता होके त्राहिमाम, शासन की बागडोर हमें थाम
विश्वास जगा है, हर तरफ विकास का सूरज उगा है
देश के दुर्भाग्य से अब नाउम्मीदी का बादल छटा है ।

माना कि, स्थिति ना बेहतर, ना बद से बदतर है
बेपटरी हो चुकी गाड़ी,अब,पकड़ी थोड़ी रफ्तार है ।
शासन का नया ये कलेवर, थोड़ा अलग ये तेवर है
कुछ काम अच्छे, तो कुछ पर प्रश्न चिन्ह खड़े हैं
उम्मीद अभी बाकी है, थोड़ा समय देना बनता है
पर नाकाम-हताश विपक्षी उद्द्विग्न बड़े हैं ।

अथ श्री जनता उवाच :-
जनता का जनता के लिए है लोकतंत्र
पर, नेताओं द्वारा खेल ये, शतरंज मनपसंद ।
लोकतंत्र नहीं, वो इसे जनता का स्वंयमवर माने
जनता को रिझाने, जुटते नेता सारे सयाने ।

राजभोग गटकने वालों की, कुम्भकर्णी नींद
खुलती है तब-तब, जब बजे चुनावी बिगुल ।
जनता की भलाई का तब, खूब पिटे ढोल
रंगा सियार चोला बदल, बोले महात्मा के बोल

फैसले की घड़ी, धूर्त नेता मति फेरे हर बार ही
कैसे बचें जनता, लुभावने भाषणों के मायाजाल से
बिक जाते चंद नोटों में, देखते बस छणिक लाभ ही
देश चुगे नेता रोज और जनता बेबस फटेहाल से

मर रहे जवान-किसान, नौकरी ढूंढते नौजवान
मौन संसद का ये कैसा नीति निर्माण  ।
असुरक्षा है, बढ़ी है महंगाई, धर्म का बाजार बढ़ा है
देशहित के स्वर्ण मृगमरीचिका का ढोंग रचा है ।
विकास की परवरिश खातिर
नेता रहते कितने हकलान - परेशान ।
पर, देश की भूख - गरीबी से लड़ते लड़ते
जाने कैसे बंधु-बांधव समेत , बन जाते धनवान ?

वैसे भी नेताओं का कब टिका ईमान धर्म है ?
आपसी लड़ाई में, किसने जाना जनता का मर्म है
अब न कान्हा, ना गीता के उपदेश, सत्ता के लिए
बस महाभारत सा छल,कपट, प्रपंच, मिथ्या है शेष ।

अथ श्री सत्तापक्ष उवाच:-
रचा है फिर चक्रव्यूह, अभिमन्यु मार गिराने को
छद्म लोकतंत्र के खतरे का, खेल है बस दिखाने को
आज एक सौ पे भारी, दो सीट वाले ने ठाना मिशन है
कलयुग के कौरवों का, बिगड़ा सारा समीकरण है ।

विरोध का आलम भी, आजकल है अजीब
दक्षिणपंथी को मिटाने, एक हुए दुश्मन पुराने
बेताल-बेसुरों का अब बस, अंतिम है तरकीब
छतीस गुण की कुंडली मिलान, हुआ ये ऐलान
गर हाँथ से हाँथ मिल जाएगा,
लालटेन से भी विकास का कमल खिल जाएगा ।
कँही का ईंट कँही का रोड़ा है,
सुना है कि भानुमति ने कुनबा जोड़ा है ।

अथ श्री विपक्ष उवाच :-
माँ-बेटा को है अटल विश्वास
एक दिन चखेंगे जीत का स्वाद ।
मोदी की लंका वो लगाएंगे
पप्पूवाले भी सेहरा सजायेंगे ।

कोई तो घर का भेदी लंका ढाहेगा
वो विभीषण सिद्धू या सिन्हा कहलायेगा ।
काश संजीवनी हरले कॉंग्रेस की प्राण
लेकिन विकट समय में कौन बने हनुमान ?
                               
क्या बुआ, भतीजा और दीदी,
लाएंगे फूल मुरझाने की विधि ?
या,लालू के दो अनमोल रत्नजोड़ा
रोकेंगे बीजेपी के अश्वमेघ का घोड़ा ?

अब ना फूले छप्पन इंच का सीना
उठो पार्थ (केजू) ! लगाओ झाड़ू निशाना ।
शतरंज की बिसात में होगा अब शाह औ मात
जब धूर विरोधी चूहे-बिल्ली लगाएंगे एक पात ।

अथ श्री जनता उवाच:-
धृतराष्ट्र जनता को है, सब विदुर ज्ञान,
मूर्ख बनाना ना अब इतना आसान ।
एक तरफ कौरव, एक तरफ लंकेश,
यक्ष प्रश्न अभी भी है शेष ?
जो इस कलयुग में
वनवास राम का मिटाएगा
और रामराज्य लाएगा
वही विजयी युगपुरुष कहलायेगा ।

कसम तुम दोनों को संविधान की,
कब, कौन, कितना ठगा है या ठगा था ?
विकास के अपहरण में और देश के चीरहरण में
कौन भरी सभा में, मौन खड़ा था ?

राजनीति- चरित्र मानस

       माँ-बेटा को है अटल विश्वास
       एक दिन चखेंगे जीत का स्वाद
       मोदी की लंका वो लगाएंगे
       पप्पूवाले दुल्हनिया ले जाएंगे ।

       कोई तो घर का भेदी लंका ढाहेगा
       वो विभीषण शिद्धू या सिन्हा कहलायेगा ।
       काश संजीवनी हरले कोंग्रेस की प्राण
       लेकिन विकट समय में कौन बने हनुमान ?

       क्या बुआ, भतीजा और दीदी,
       लाएंगे फूल मुरझाने की विधि ?
       या,लालू के दो अनमोल रत्नजोड़ा
       रोकेंगे बीजेपी के अश्वमेघ का घोड़ा ?

        अब ना फूलेगा छप्पन इंच का सीना
        उठो पार्थ (केजू) ! लगाओ झाड़ू निशाना ।
        शतरंज की बिसात में होगा अब शाह औ मात
        जब धूर विरोधी चूहे-बिल्ली लगाएंगे एक पात ।

        धृतराष्ट्र जनता को है, सब विदुर ज्ञान,
         मूर्ख बनाना ना अब इतना आसान ।
         एक तरफ कौरव, एक तरफ लंकेश,
         यक्ष प्रश्न अभी भी है शेष ?
         जो इस कलयुग में
         वनवास राम का मिटाएगा
         और रामराज्य लाएगा
         वही पूर्ण विजेता कहलायेगा ।

          कसम तुम दोनों को संविधान की,
          कब, कौन, कितना ठगा है या ठगा था ?
          विकास के अपहरण में और देश के चीरहरण में
         कौन भरी सभा में, मौन खड़ा था ?